यूँ तो घर की ड्योढ़ी पर,
बखत बे बखत अक्सर ही,
वो उसका रस्ता तकती है,
ना जाने फागुन के आते ही;
वो थोडा खिल सी जाती है ll
वो चिट्ठी फिर से पढ़ती है,
लिखा था जिसमे उसने की,
मैं लौटूंगा फागुन में,
हवा से पूछती है वो,
कि उसका पिया कहाँ पे हैll
वो सजती है, संवरती है,
खुदी से बातें करती है,
फागुन का हर एक दिन वो
गिन - गिन के बिताती है ll
फागुन जब ढलने लगता है,
तो वो भी ढलने लगती है,
मगर फिर भी हर एक दिन वो
खुद को ये समझाती है;
कि लिखा था ख़त में उसने ये,
कि लौटूंगा मैं फागुन मे ll
फागुन यूँ बीत जाता है,
वो कुछ-कुछ टूट जाती है,
यादों में पिछले फागुन की वो;
वो फिर से डूब जाती हैll
Superb.. Ye shauk kab se bhai.. Mast hai.
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास............
ReplyDeleteVery touching ...... Good poetry.
ReplyDeleteफागुन यूँ बीत जाता है,
ReplyDeleteवो कुछ-कुछ टूट जाती है,
यादों में पिछले फागुन की वो;
वो फिर से डूब जाती है..Nice ...
ha ha ha. thank you
DeleteAtiuttam...
ReplyDeletewaah yaar..beautiful poems, with your lines i can say that "MEMORIES" are one of the manifestation of "LOVE".
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