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Saturday 8 November 2014

चिनार की सूखी पत्तियाँ.....




मेरी किताबों के बीच रखी हुई
चिनार की सूखी पत्तियाँ
मुझे उन दिनों की याद दिलाती हैं;
जब वो हरी थीं और मैंने
ताजा-ताजा उन्हें रखा था।।
   
      जिन दिनों वो पेड़ पर थीं, खिलखिलाती थीं
      बदलती थीं रंग मौसम के साथ;
      और हर एक दिन बदलती हुई
      कुछ और बढ़ती, कुछ और रंगती,
      अपने बचपन से यौवन के बीच।।

अब वो यहीं रहती हैं
किताब के पन्नो की तहों के बीच;
मैंने देखा है कि
हवा के झोंके उनको हिलाते नहीं
अब बारिश की बूंदें उनको भिगाती नहीं
मानों इन सब से हो गयी हों बेअसर तब से
जब से मेरा दामन थामा है।

        अब वो सूख गयी हैं
        उनमे वो चमक, वो मुलायम एहसास नहीं।
        मानों रूखी हो गयी हों
        और नीरस भी; मेरी तरह ।।

उन्हें अब यहीं रहना पसन्द है
इन किताबों के पन्नों की तहों  के बीच
बेपरवाह बाहर होने वाली बातों से;
समाजों से, रीति - रिवाज़ों से;
मेरी तरह ।।

       ये सूखी भूरे रंग की पत्तियाँ,
       मुझे अक्सर ही याद दिलाती हैं,
       उन दिनों की,
       जब वो हरी थीं, और मैंने;
       ताजा-ताजा उन्हें रखा था ।।
   


Tuesday 13 May 2014

क्या लिखूँ .

एक बंद पुराने कमरे में,
लिखने की कुछ कोशिश में,
एक कागज और एक कलम,
सोच में इस क्या लिखें हम।।
   
   
         गीत लिखूँ, संगीत लिखूँ
         या तेरी मेरी प्रीत लिखूँ,
         हार लिखूँ और जीत लिखूँ
        या गंगा का संध्या-दीप लिखूँ।।
        देस लिखूँ , परदेस लिखूँ ,
         तुमको जो भेजे संदेस लिखूँ।।


आँखों से जो होती बातें,
बीते सावन की  बरसातें
तन्हाई मे बीती रातें;
या लिखूँ  कोई एक कहानी
जो तुम्हे सुनाये दादी-नानी
नयी लिखूँ या  लिखूँ  पुरानी।।


                 लिखना चाहूँ हर दिन कुछ-कुछ
                  जो सबके मन को भाये,
                   ओठ  हो पुलकित, मन हर्षाये
                    भटके को रास्ता दिखलाये।।


एक बंद पुराने कमरे में,
लिखने की कुछ कोशिश में।।




Friday 7 February 2014

याद कभी तो करते होंगे..

याद कभी तो करते होंगे
चुभती सी तन्हाई में,
या कागज और स्याही में,
या मौसम कि पहली बारिश में,
मुझे पता है;
याद कभी तो करते होंगे।।


                ये पिछले जनम की तो बात नहीं,
                 भूल गए वो बातें सारी,
                 ऐसा मुझको विश्वास नहीं;
                  रह-रहकर आईने से,
                  बात कभी तो करते होंगे,
                   मुझे पता है;
                   याद कभी तो करते होंगे।।


वो कहते हैं उस बगिया में,
अब कोई पहरेदार नहीं,
वो कहते हैं उस बग़िया में,
होती अब बरसात नहीं,
मैं कहता हूँ उस बगिया में,
फूल अभी तक  खिलते होंगे
मुझे पता है;
याद कभी तो करते होंगे।।


                  तन्हा  रस्तों  पर चल ना पाओगे,
                  ऐसी तो कोई बात नहीं।
                  गिरे अगर उठ न पाओगे,
                  ऐसी भी कोई बात नहीं
                   पर फिर भी.… मिल जाएँ  एक मोड़ पर यूँ ही,
                   फ़रियाद कभी तो करते होंगे,
                    मुझे पता है;
                    याद कभी तो करते होंगे।।