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Thursday 17 October 2013

फर्क नहीं पड़ता...

जब चार बरस का दीपू कोई,
ढाबे पर बर्तन धोता है
जब सड़क किनारे मुन्ना कोई
भूख के मारे रोता है:
तब मैं कहता हूँ यारों कि
मुझको फर्क नहीं पड़ता ll
     
        भारत माँ का लाल कोई जब 
        सीमा पर अपनी जान गँवाए,
        पानी के बँटवारे को लेकर जब
        खेत किसी का जुत ना पाए
        मैं उदासीन, मैं व्यसनलीन
        मुझको फर्क नहीं पड़ता ll




भ्रष्ट तंत्र व भ्रष्ट सरकार
नित ही होते बलात्कार
मानवता है शर्मसार;
कौन करे इसका उद्धार
तब भी मैं ये ही कहता हूँ
मुझको फर्क नहीं पड़ता ll 


     देश को अच्छा नेता चाहिए
     यह कहने तक बस मेरी हिस्सेदारी,
     बाकि सब उनकी जिम्मेदारी
     देश पर क्यूँ न आफत टूटे,
     पर मेरी सुख-सुविधा न छूटे
     मैं अपनी मस्ती में रहता हूँ
     मुझको फर्क नहीं पड़ता ll 

जब नेटवर्क में अड़चन आये
ट्विटर, फेसबुक खुल ना पाए
आँधी और बारिश के कारण
चंद मिनट बिजली ना आये
तब यारों मुश्किल है कहना कि
मुझको फर्क नहीं पड़ता ll  

6 comments:

  1. bahut badhiya likha hai

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  2. बहुत सही लिखा है हिमांशु जी... आजकल ज़्यादातर लोगों को सिर्फ नेटवर्क न मिलने पर ही फर्क़ पड़ता है..बहुत सुन्दर रचना।

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  3. पोस्ट पर आने के लिए और आपके कमेंट के लिए सभी को धन्यवाद l

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  4. समाजिक यथार्थता पर बेहतरीन कटाक्ष

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