ये जानते हुए भी कि
न लौट के आओगे तुम कभी
वो शाम ठहर के वहीँ;
तेरा इंतज़ार करती है l
अहसास होते हुए भी ये
कि निकल गया तू बहुत दूर कहीं
तब भी मेरी नजरें क्यूँ हर पल;
तेरा दीदार करती हैं l
ये जानते हुए भी कि
फर्क तुझमें और मुझमे ऐसे
जैसे धरती और अम्बर में,
फिर भी मुझसे दुनिया ये अक्सर;
जिक्र तेरा ही करती है l
बरस दर बरस बीत गए
लेकिन मैं रह गया पीछे कहीं
उसी रात पर;
वो रात ठहर के वहीँ
तुझी से बात करती है l
वो शाम ठहर के वहीँ
तेरा इंतज़ार करती है l
न लौट के आओगे तुम कभी
वो शाम ठहर के वहीँ;
तेरा इंतज़ार करती है l
अहसास होते हुए भी ये
कि निकल गया तू बहुत दूर कहीं
तब भी मेरी नजरें क्यूँ हर पल;
तेरा दीदार करती हैं l
ये जानते हुए भी कि
फर्क तुझमें और मुझमे ऐसे
जैसे धरती और अम्बर में,
फिर भी मुझसे दुनिया ये अक्सर;
जिक्र तेरा ही करती है l
बरस दर बरस बीत गए
लेकिन मैं रह गया पीछे कहीं
उसी रात पर;
वो रात ठहर के वहीँ
तुझी से बात करती है l
वो शाम ठहर के वहीँ
तेरा इंतज़ार करती है l
वो रात ठहर के वहीँ
ReplyDeleteतुझी से बात करती है .... I can see different tastes in ur poems :)
thank you didi..
Deletedifferent mood different times.
सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
awesomeeeeeeeeeeeeeeee......!!!
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