एक बंद पुराने कमरे में,
लिखने की कुछ कोशिश में,
एक कागज और एक कलम,
सोच में इस क्या लिखें हम।।
गीत लिखूँ, संगीत लिखूँ
या तेरी मेरी प्रीत लिखूँ,
हार लिखूँ और जीत लिखूँ
या गंगा का संध्या-दीप लिखूँ।।
देस लिखूँ , परदेस लिखूँ ,
तुमको जो भेजे संदेस लिखूँ।।
आँखों से जो होती बातें,
बीते सावन की बरसातें
तन्हाई मे बीती रातें;
या लिखूँ कोई एक कहानी
जो तुम्हे सुनाये दादी-नानी
नयी लिखूँ या लिखूँ पुरानी।।
लिखना चाहूँ हर दिन कुछ-कुछ
जो सबके मन को भाये,
ओठ हो पुलकित, मन हर्षाये
भटके को रास्ता दिखलाये।।
एक बंद पुराने कमरे में,
लिखने की कुछ कोशिश में।।
लिखने की कुछ कोशिश में,
एक कागज और एक कलम,
सोच में इस क्या लिखें हम।।
गीत लिखूँ, संगीत लिखूँ
या तेरी मेरी प्रीत लिखूँ,
हार लिखूँ और जीत लिखूँ
या गंगा का संध्या-दीप लिखूँ।।
देस लिखूँ , परदेस लिखूँ ,
तुमको जो भेजे संदेस लिखूँ।।
आँखों से जो होती बातें,
बीते सावन की बरसातें
तन्हाई मे बीती रातें;
या लिखूँ कोई एक कहानी
जो तुम्हे सुनाये दादी-नानी
नयी लिखूँ या लिखूँ पुरानी।।
लिखना चाहूँ हर दिन कुछ-कुछ
जो सबके मन को भाये,
ओठ हो पुलकित, मन हर्षाये
भटके को रास्ता दिखलाये।।
एक बंद पुराने कमरे में,
लिखने की कुछ कोशिश में।।