लफ्ज़ अब मिलते नहीं
नज़्म अब बनती नहीं।
रंग चढ़ गया है इन पर भी शायद।
धर्म- जात और भी जो,
तरीके हैं फ़र्क करने के;
वो सब अब हावी लगते हैं।
तमाम कोशिशें करता हूँ इनको मिलाने की
लेकिन नज़्म अब बनती नहीं,
भारत आगे बढ़ता नहीं।।
इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_ http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
lovely...
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteअद्भुत हैं |👏
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteइस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html