जिन आँखों में जगे हों सपने,
उन आँखों में नींद कहाँ?
जब दीप जले हों रातों में,
तब अंधियारे के तीर कहाँ?
बढ़ेंगे पग तो राह बनेगी,
उम्मीदों की धूप खिलेगी l
जब निर्भय और संकल्प से यारी,
तब फिर मन भयभीत कहाँ?
पथ में कितने साथी छूटे;
पर तेरा न साहस टूटे,
निर्भर केवल जब स्वयं के श्रम पर,
तब रिश्ते-नाते, मीत कहाँ?
हर एक हार संकल्प बढ़ाये,
हर एक जीत आगे ले जाए;
धैर्य नियंत्रित, पथ संकल्पित
अब मंजिल मेरी दूर कहाँ?
जब दीप जले हों रातों में,
तो अंधियारे के तीर कहाँ?
उन आँखों में नींद कहाँ?
जब दीप जले हों रातों में,
तब अंधियारे के तीर कहाँ?
बढ़ेंगे पग तो राह बनेगी,
उम्मीदों की धूप खिलेगी l
जब निर्भय और संकल्प से यारी,
तब फिर मन भयभीत कहाँ?
पथ में कितने साथी छूटे;
पर तेरा न साहस टूटे,
निर्भर केवल जब स्वयं के श्रम पर,
तब रिश्ते-नाते, मीत कहाँ?
हर एक हार संकल्प बढ़ाये,
हर एक जीत आगे ले जाए;
धैर्य नियंत्रित, पथ संकल्पित
अब मंजिल मेरी दूर कहाँ?
जब दीप जले हों रातों में,
तो अंधियारे के तीर कहाँ?