चाँद आधा है और मैं भी,
अब लिखता हूँ तेरी तलाश में,
सुबह से लेकर शाम
जमीं से लेकर आसमान।
अब हर दिन के बाद
जब रात आती है,
तो मानो ठहर सी जाती है
खालीपन में मेरे दिल के।
पूनम की रातें तो
आती हैं अक्सर ही,
पर चांदनी मेरे आँगन में
अब बरसती नहीं।
अब लिखता हूँ तेरी तलाश में,
कि शायद मेरी कोई नज़्म
पसन्द आएगी तुझे,
और आसमान से उतरकर
फिर एक बार मेरे करीब आये
और मुकम्मल हो जाये मुझमें।