तेरह दिन की गहरी धुंध,
और अगली सुबह,
जैसे सुबह ही नहीं हुई।
चारों ओर तम का साया
हे ईश! नहीं कहीं तेरी छाया।।
जीवन हार गया है आज,
विद्रोह- पूरित सम्पूर्ण समाज।
अब जीवित केवल निराशा,
और चुभन लाचारी की;
यही कहानी शेष बची अब,
हिन्दुस्तान की नारी की।।
कैसा है ये अंतर्द्वंद,
क्रोधाग्नि अब क्यूँ रहे मंद।
मानव को मानव बनना होगा।
क्रोधाग्नि में जलना होगा,
अग्नि-परीक्षा तय कर ही इसको,
तपकर सोना बनना होगा।।
और अगली सुबह,
जैसे सुबह ही नहीं हुई।
चारों ओर तम का साया
हे ईश! नहीं कहीं तेरी छाया।।
जीवन हार गया है आज,
विद्रोह- पूरित सम्पूर्ण समाज।
अब जीवित केवल निराशा,
और चुभन लाचारी की;
यही कहानी शेष बची अब,
हिन्दुस्तान की नारी की।।
कैसा है ये अंतर्द्वंद,
क्रोधाग्नि अब क्यूँ रहे मंद।
मानव को मानव बनना होगा।
क्रोधाग्नि में जलना होगा,
अग्नि-परीक्षा तय कर ही इसको,
तपकर सोना बनना होगा।।
Women have no hope for safety in the country now. अब जीवित केवल निराशा,
ReplyDeleteऔर चुभन लाचारी की;
यही कहानी शेष बची अब,
हिन्दुस्तान की नारी की।।
ultimate broo!!!!!!
ReplyDeleteGoD bless u !!!!
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद l
Deleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
सम सामायिक रचना..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,
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