ANTARDWAND...
Wednesday, 21 October 2015
फ़र्क...
लफ्ज़ अब मिलते नहीं
नज़्म अब बनती नहीं।
रंग चढ़ गया है इन पर भी शायद।
धर्म- जात और भी जो,
तरीके हैं फ़र्क करने के;
वो सब अब हावी लगते हैं।
तमाम कोशिशें करता हूँ इनको मिलाने की
लेकिन नज़्म अब बनती नहीं,
भारत आगे बढ़ता नहीं।।
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)