ये पंक्तियाँ मैंने दो साल पहले लिखी थी, आज यूँ ही पन्ने पलटते हुए इस पर मेरी नजर पड़ी तो सोचा शेयर करूँ आप सब के साथ। आखिरी चार पंक्तियाँ कल ही जोड़ी। इसीलिए इसका शीर्षक " पुराने पन्नों से " दिया।
यूँ तो चांदनी अपना दामन समेट ही चुकी है,
पर सवेरा होना अभी बाकी है।
कुछ पायदान ऊपर चढ़ी है जिन्दगी
कामयाबी का सुरूर अभी बाकी है।।
ओझिल होते हुए सपनों की किताब से
एक पन्ना चुरा लिया है हमने,
रंगो से भरे कल कि तस्वीर देखी है हमने,
तस्वीर को हकीकत बनाना अभी बाकी है।।
इन पथरायी आँखों ने खो दिया है
सारा यौवन उनके इंतजार में
कल शाम ढले एक पैगाम तो आया था;
पर उनका आना अभी बाकी है।।
मुमकिन है कि ढूँढ ही लेंगे एक नया जहाँ,
कि पंखों में उड़ान अभी बाकी है।
बर्फ से टूटती हुई नदी को,
साहिल कि तलाश अभी बाकी है।।
यूँ तो चांदनी अपना दामन समेट ही चुकी है,
पर सवेरा होना अभी बाकी है।
कुछ पायदान ऊपर चढ़ी है जिन्दगी
कामयाबी का सुरूर अभी बाकी है।।
ओझिल होते हुए सपनों की किताब से
एक पन्ना चुरा लिया है हमने,
रंगो से भरे कल कि तस्वीर देखी है हमने,
तस्वीर को हकीकत बनाना अभी बाकी है।।
इन पथरायी आँखों ने खो दिया है
सारा यौवन उनके इंतजार में
कल शाम ढले एक पैगाम तो आया था;
पर उनका आना अभी बाकी है।।
मुमकिन है कि ढूँढ ही लेंगे एक नया जहाँ,
कि पंखों में उड़ान अभी बाकी है।
बर्फ से टूटती हुई नदी को,
साहिल कि तलाश अभी बाकी है।।