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Saturday 8 November 2014

चिनार की सूखी पत्तियाँ.....




मेरी किताबों के बीच रखी हुई
चिनार की सूखी पत्तियाँ
मुझे उन दिनों की याद दिलाती हैं;
जब वो हरी थीं और मैंने
ताजा-ताजा उन्हें रखा था।।
   
      जिन दिनों वो पेड़ पर थीं, खिलखिलाती थीं
      बदलती थीं रंग मौसम के साथ;
      और हर एक दिन बदलती हुई
      कुछ और बढ़ती, कुछ और रंगती,
      अपने बचपन से यौवन के बीच।।

अब वो यहीं रहती हैं
किताब के पन्नो की तहों के बीच;
मैंने देखा है कि
हवा के झोंके उनको हिलाते नहीं
अब बारिश की बूंदें उनको भिगाती नहीं
मानों इन सब से हो गयी हों बेअसर तब से
जब से मेरा दामन थामा है।

        अब वो सूख गयी हैं
        उनमे वो चमक, वो मुलायम एहसास नहीं।
        मानों रूखी हो गयी हों
        और नीरस भी; मेरी तरह ।।

उन्हें अब यहीं रहना पसन्द है
इन किताबों के पन्नों की तहों  के बीच
बेपरवाह बाहर होने वाली बातों से;
समाजों से, रीति - रिवाज़ों से;
मेरी तरह ।।

       ये सूखी भूरे रंग की पत्तियाँ,
       मुझे अक्सर ही याद दिलाती हैं,
       उन दिनों की,
       जब वो हरी थीं, और मैंने;
       ताजा-ताजा उन्हें रखा था ।।