ये जानते हुए भी कि
न लौट के आओगे तुम कभी
वो शाम ठहर के वहीँ;
तेरा इंतज़ार करती है l
अहसास होते हुए भी ये
कि निकल गया तू बहुत दूर कहीं
तब भी मेरी नजरें क्यूँ हर पल;
तेरा दीदार करती हैं l
ये जानते हुए भी कि
फर्क तुझमें और मुझमे ऐसे
जैसे धरती और अम्बर में,
फिर भी मुझसे दुनिया ये अक्सर;
जिक्र तेरा ही करती है l
बरस दर बरस बीत गए
लेकिन मैं रह गया पीछे कहीं
उसी रात पर;
वो रात ठहर के वहीँ
तुझी से बात करती है l
वो शाम ठहर के वहीँ
तेरा इंतज़ार करती है l
न लौट के आओगे तुम कभी
वो शाम ठहर के वहीँ;
तेरा इंतज़ार करती है l
अहसास होते हुए भी ये
कि निकल गया तू बहुत दूर कहीं
तब भी मेरी नजरें क्यूँ हर पल;
तेरा दीदार करती हैं l
ये जानते हुए भी कि
फर्क तुझमें और मुझमे ऐसे
जैसे धरती और अम्बर में,
फिर भी मुझसे दुनिया ये अक्सर;
जिक्र तेरा ही करती है l
बरस दर बरस बीत गए
लेकिन मैं रह गया पीछे कहीं
उसी रात पर;
वो रात ठहर के वहीँ
तुझी से बात करती है l
वो शाम ठहर के वहीँ
तेरा इंतज़ार करती है l